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गुवाहाटी में खराब बैटिंग के बाद BCCI की घरेलू क्रिकेट नीति पर उठे सवाल

गुवाहाटी टेस्ट में भारत की बल्लेबाजी का जिस तरह से खस्ताहाल हुआ, उसने सिर्फ भारतीय बल्लेबाजों के कौशल पर सवाल खड़े नहीं किए, बल्कि उसने भारतीय क्रिकेट की अंदरूनी प्रणाली पर अंगुली उठा दी है। जिस समय भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) लगातार सार्वजनिक मंचों पर रणजी ट्रॉफी और घरेलू क्रिकेट को प्राथमिकता देने की बात करता है, उसी समय चयन और तैयारी के फैसलों में उसकी प्रतिबद्धता कहीं नहीं दिखी। यह पतन एक सेशन या लापरवाही की गलती नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि भारत, टेस्ट क्रिकेट में रणनीति में, चयन के दृष्टिकोण में और धैर्यपूर्वक बल्लेबाजी में कमी झेल रहा है।

दक्षिण अफ्रीका: 489 रन, भारत 201 पर ऑलआउट

कुलदीप यादव ने पहले दिन के खेल के बाद पिच को रोड यानी सपाट कहा था। यानी ऐसी फ्लैट सतह जहां बल्लेबाज घंटों टिक सकते थे, लेकिन भारत 201 पर सिमट गया। गेंदबाजी में दक्षिण अफ्रीका के मार्को यानसेन और साइमन हार्मर की क्वालिटी थी, लेकिन भारतीय बल्लेबाज अपनी परिस्थितियों के अनुसार नहीं खेले। तीन विकेट 13 गेंदों में गिरना, सेट बल्लेबाजों का गलत निर्णय लेना और बड़े मौकों पर गलत शॉट चुनना, यह सब तकनीकी हार नहीं, बल्कि सोच और मैच समझ की हार थी। तीसरे दिन का अंत होते-होते दक्षिण अफ्रीका की लीड 310 के पार पहुंच चुकी थी और भारत खुद को गंभीर के कार्यकाल की दूसरी घरेलू व्हाइटवॉश के मुहाने पर खड़ा पा रहा था।

घरेलू क्रिकेट: बात ज्यादा, मौका कम

रणजी ट्रॉफी को भारतीय टेस्ट टीम की नींव बताया जाता है, पर चयन के पैमानों पर उसकी भूमिका कमजोर पड़ती दिख रही है। रिकॉर्ड देखें तो असमानता स्पष्ट दिखती है। नायर और सरफराज जैसे बल्लेबाजों ने घरेलू क्रिकेट में वो प्रदर्शन किया है जो पहले टेस्ट कैप की गारंटी माना जाता था। लेकिन आज स्थिति उलट है। अनुभव कम पर संभावना वाले खिलाड़ी आगे दिख रहे हैं, तो सवाल उठना जरूरी है। अगर घरेलू प्रदर्शन अब चयन का प्राथमिक आधार नहीं है, तो फिर है क्या?

खिलाड़ी फर्स्ट क्लास मैच औसत

साई सुदर्शन 38 39.41

ध्रुव जुरेल 31 55.71

करुण नायर 125 50.41

सरफराज खान 60 63.15

स्किल नहीं, सोच और मानसिकता गिरी

वॉशिंगटन सुंदर और कुलदीप यादव ने दबाव में 72 रन की साझेदारी कर यह दिखा दिया कि विकेट पर टिकना असंभव नहीं था। उन्होंने तकनीक नहीं बदली, बल्कि उन्होंने सोच और धैर्य बदला। इसके विपरीत, सुदर्शन एक ही तरह की गेंदों पर बार-बार आउट हो रहे हैं। जुरेल ने टी-ब्रेक से ठीक पहले अनावश्यक शॉट खेला। ऋषभ पंत जोश-जोश में विकेट फेंककर चले गए। इन गलतियों ने ये साबित किया कि भारतीय युवा खिलाड़ियों की समस्या शॉट चयन और मानसिक मजबूती में है, न कि प्रतिभा में।

अनुभव सिर्फ उम्र नहीं…एक संपत्ति

टेस्ट क्रिकेट में युवा खिलाड़ियों को मौका देना भविष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट प्रयोग की प्रयोगशाला नहीं है। यहां कंडीशन पढ़ना, मैच की गति समझना और मानसिक रूप से लंबी लड़ाई लड़ना आना चाहिए और यह सब घरेलू सर्किट में वर्षों तक खेलने से आता है। नायर और सरफराज जैसे बल्लेबाजों के पास वही अनुभव है। वह जानते हैं कि दबाव में धैर्य और धैर्य में रन की रणनीति ही सही है। नायर को जहां एक सीरीज के बाद बैठा दिया गया, वहीं सरफराज अचानक टेस्ट स्क्वॉड से गायब हो गए।

हार से सीखना आवश्यक

कुछ लोगों का मानना है कि यह युवा टीम भविष्य के लिए तैयार हो रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत अब सीखते-हारते चरण में है? या यह एक ऐसी टीम है, जो हर मैच जीतने के मानक पर बनी थी? कोहली और रोहित के कार्यकाल में भारत को घरेलू परिस्थितियों में हरा पाना नामुमकिन था। न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज ने सब बदल दिया तो सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हुआ क्या जिससे इतना अंतर आ गया। भारत की पहचान विश्व क्रिकेट में टेस्ट में अजेय ताकत की थी, खासकर घर में। इसलिए हार को विकास की प्रक्रिया कहकर सामान्य करना गलत दिशा का संकेत है। भारत के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। समस्या दिशा, चयन मानदंड और क्रिकेटिंग माइंडसेट की है।

अपनी कला में निपुण खिलाड़ी चाहिए

टेस्ट क्रिकेट में प्रतिभा महत्वपूर्ण है, लेकिन संयम, समझ और अनुभव अनिवार्य हैं। गुवाहाटी टेस्ट ने यह साफ कर दिया है भारत को वैसा खिलाड़ी चाहिए, जो अपने कौशल में निपुण हो। बल्लेबाज पूरी तरह बल्लेबाज हो और गेंदबाज पूरी तरह गेंदबाज। सिर्फ ऑलराउंडर भर के टेस्ट क्रिकेट को नहीं जीता जा सकता।

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